मौलाना के 'परमतत्व का ज्ञान' देने के बाद, उस पर मेरी 26 साल की रिसर्च
*"परमतत्व का ज्ञान"*
लेखक: डा० अनवर जमाल
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आपको विषय समझाने के लिए लंबा लेख लिखना पड़ता है ताकि आपका भला हो।
आपका भला न करना हो
और केवल ख़ुद को व्यक्त करना हो तो एक लाईन की पोस्ट बहुत है। जैसे कि
"मानेगा नहीं वह, डुबाकर ही छोड़ेगा"
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... लेकिन इस एक लाईन से किसी का क्या भला हुआ?
लोगों को अधिकतर अपना भला नहीं करना है।
उन्हें किसी का विरोध करना है
या
किसी की प्रशंसा करनी है।
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किसी के विरोध
या
किसी की प्रशंसा में
लोगों की हालत
Washer man के dog जैसी हो चुकी है
लेकिन
उन्हें विरोध
या
प्रशंसा ही करनी है।
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मैं कहता हूँ कि
क्रिएटर ने तुम्हें अपना "मैं" नाम दिया है।
जिसकी महिमा बाइबिल, भागवत और गीता तीनों में है।
जिसे जानने के बाद यहूदी, ईसाई, पंडित और पठान ने ख़ुद को ऊपर उठा लिया।
"मैं" ही आत्मतत्व है जिसे संस्कृत में गीता के दसवें अध्याय में "अहम्" कहा गया है।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने मुझे बताया कि "अहमद" के नूर से ही यह सृष्टि बनी है।"
"उनके इस वाक्य के एप्लीकेशंस तलाशने में मुझे 26 साल लग गए।"
जैसे मैं ज़िंदा हूँ और अपने होने को फ़ील करता हूँ,
ऐसे ही चारों ओर फैली हुई यह सृष्टि भी ज़िंदा है और यह सृष्टि अपने होने को फ़ील करती है। जो नूर (जयोति) इस सृष्टि में हर चीज़ में फैला हुआ है, वही नूर मुझमें है। यही वास्तव में अखंड ज्योति है और यही "मैं हूँ" नाम है और यही नाम गुप्त नाम है और इस नाम से हरेक काम हो जाता है।
जो यह नहीं जानता,
वह ज्ञान नहीं रखता।
जिसकी वजह से वह नफ़रत और नाइंसाफी करता है और फिर इसका फल दंड के रूप में भुगतेगा।
जो परमतत्व "मैं" को नहीं पहचानता,
वह अपने "सात्विक मैं" में राजसिक या तामसिक विचार भरकर उसे "राजसिक मैं" या "तामसिक मैं" बना देगा जिसके नतीजे में वह वही करेगा,
जिन विचारों को उसने अपने "मैं" (चेतना) में परमानेंट जगह दे रखी है।
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नूरे अहमद या ब्रह्मांडीय चेतना जाति, राजनैतिक सीमा और राष्ट्रवाद को नहीं मानती।
नाम फ़ारसी में लो या संस्कृत में, हक़ीक़त यही है कि सबमें "एक ज्योति" है।
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अगर आप परमतत्व "मैं" को बाइबिल, गीता और इस्लामिक ग्रंथों में तुलनात्मक रूप से पढ़ लें तो आपको वह ज्ञान हो जाएगा,
जो कि आपको होना चाहिए लेकिन
स्कूल सिलेबस से यह ज्ञान ग़ायब है।
इस ज्ञान के होते ही आप गुरू बन जाते हैं।
अपने आप का ज्ञान।
मैं कैसे ज़िंदा हूँ?
मेरी जो दशा है, वह क्यों है?
मैं अपनी दशा कैसे बेहतर बना सकता हूँ?
इसका ज्ञान, अपने आपका ज्ञान है।
मैं इस गुप्त ज्ञान की फ़्री होम डिलीवरी करता हूं और यहां सब दोस्तों को अपना शागिर्द मानता हूँ।
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मैं जानता हूं कि
लोगों को ज्ञान नहीं चाहिए।
जैसे उनके विचार हैं,
वे मुझसे वैसे ही विचार सुनना चाहते हैं
और
वह भी 2-4 लाईन में।
दूसरों को दोष दो
कि वह डुबा देगा
जबकि
पहले से ख़ुद ही डूबे पड़े थे
तभी दूसरे को आप पर क़ाबू मिला
और
आपके बड़ों ने अपने हित की सेफ़्टी के लिए या सीमित लाभ के लिए समूह की बलि दे दी।
मलामत (दोषारोपण) करना है तो ख़ुद को करो,
उनकी करो, जिन्होंने डील की और ढील दी।
और
सुधारना है तो भी ख़ुद को सुधारो
या
अपने पेशवाओं को सुधारो।
जिससे वास्तव में असर पड़ेगा।
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मेरे लेख "ख़ुद को समझने और सुधारने" के विषय पर हैं।
क्या फ़ेसबुक पर मैं यह एक लाईन लिख दूँ:
'ख़ुद को समझो और सुधर जाओ'
तो इससे कोई कुछ फ़ायदा ले सकेगा
जब तक कि उसे तरीक़ा न बताया जाए कि
ख़ुद को कैसे समझो और कैसे सुधारो?
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तरीक़ा लिखते ही मेरी पोस्ट लंबी हो जाती है
और
फ़ेसबुक पर अधिकतर लोग लंबी पोस्ट नहीं पढ़ते।
इसलिए अधिकतर लोग
जिस हाल में हैं,
इसी हाल में रहेंगे।
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मेरे घर बैठे ज्ञान देने से भी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया और आगे जो होगा, वह ऊपर वाले के हाथ में है।
#आत्मनिर्भरता_कोच #अल्लाहपैथी
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