Maulana Shams Naved Usmani's special dawah technique
फ़ैसल अराफ़ात भाई ने हमें कल एक स्क्रीन शॉट भेजा है। जिसमें वह एक सनातनी हिन्दू भाई हे से धर्म पर चर्चा कर रहे हैं। वह स्क्रीन शॉट दिखाकर उन्होंने हमसे पूछा कि
'सर, इसका क्या जवाब दिया जाए?'
'सर, इसका क्या जवाब दिया जाए?'
डा. अनवर जमाल: प्यारे भाई! आत्मा क्या है?, इस पर बात करना एक बहुत बड़ा गोरखधंधा है।
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आपका तरीक़ा सवाल जवाब पर ही बेस्ड है, लिहाज़ा हर नया आदमी आकर आपसे एक नया सवाल करेगा और फिर आप सोचेंगे कि इसका क्या जवाब दें?
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आप यह जान लें कि आम सनातनी वैदिक धर्मी वेदांत दर्शन को मानते हैं और वेदांत दर्शन यह है कि आत्मा ही परमात्मा है।
यानि मनुष्य के अंदर जो जीवात्मा है, वास्तव में वह परमात्मा है।
जो लोग अपने परमात्मा होने को नहीं पहचानते, वे अज्ञानी हैं और जो अपने परमात्मा होने को पहचानते हैं, वे ज्ञानी हैं।
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि हिंदुओं में सबसे बड़ा ज्ञान यह है कि मनुष्य अपने आप को परमात्मा के रूप में पहचान ले। परमात्मा नाम को वे परमेश्वर के नाम के रूप में बोलते हैं।
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इस्लाम में सबसे बड़ा ज्ञान यह है कि मनुष्य अपने आप को बंदे के रूप में पहचान ले और अपने रब के सामने समर्पण कर दे।
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सनातनी हिंदुओं में यही वेदांत मत सर्वाधिक प्रचलित है।
आम सनातनी हिंदू नहीं जानते कि दूतवाद (नुबूव्वत) क्या होता है?
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वे तो यह मानते हैं कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ता है तो नेक लोगों की रक्षा करने के लिए परमेश्वर किसी पशु या मनुष्य का रूप बनाकर धरती पर खुद ही आता है। यह अवतारवाद कहलाता है।
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हिंदुओं की मान्यता के अनुसार निराकार परमेश्वर का नाम भी राम है और जब वह दशरथ का बेटा बनकर मनुष्य के रूप में आता है, तब भी उसका नाम राम है।
इस तरह निराकार परमेश्वर साकार होता है और नेक लोगों की रक्षा करता है।
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अब जब एक मुस्लिम कहता है कि जो बात वैदिक धर्म कहता है वही बात इस्लाम कहता है।
तो उस मुस्लिम का मतलब यह होता है कि वेदों में एकेश्वरवाद है, दूतवाद है, परलोक वाद है, कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नरक मिलने की बातें हैं।
लेकिन हिंदू भाई अपने मन में यह समझता है कि मुस्लिम उसकी मान्यता का समर्थन कर रहे हैं कि आत्मा परमात्मा है। यानि राम परमेश्वर हैं क्योंकि वह निराकार और साकार में भेद नहीं करते।
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बताने वाला मुस्लिम अपने माइंड से अपनी बात बताता है और सुनने वाला हिंदू भाई अपने माइंड से उसे अपनी समझ के अनुसार समझता है।
अब वेद क़ुरआन में समानताएं बताने वाले मुस्लिम भाईयों के सामने बड़ी समस्या पैदा हो जाती है कि न तो वे यह कह सकते हैं कि नहीं, वैदिक धर्म की मान्यता वेदांत अलग बात है और इस्लाम की मान्यता अलग है कि परमेश्वर और उसके दूत अलग अलग हैं और न वे इसे स्वीकार कर सकते हैं।
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दोनों धर्म वाले एक दूसरे को अपनी अपनी मान्यताएं समझाते रहते हैं और दोनों एक दूसरे को कंफ्यूज़ करते रहते हैं।
ज़्यादातर जगहों पर लंबी डिबेट के सिवा नतीजा कुछ भी नहीं निकलता। मेरी काफी उम्र इसी तरह की बहसों में गुज़र गई।
कुछ जगहों पर नतीजा यह निकलता है कि हिंदू भाई यह समझने लगते हैं कि हमारा वेद सच्चा है और हमारे दर्शन सच्चे हैं, हमारा साहित्य सच्चा है और अब तो मुसलमानों ने भी कह दिया कि आपके ग्रंथों में सत्य भरा पड़ा है। अत: हमारे जो गुरु बताते हैं, सत्य बताते हैं।
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इस तरह एक आम सनातनी हिंदू पहले जिन बातों को लेकर दुविधा में था, वेद क़ुरआन की समानता की बातें करने वाले मुस्लिम दाईयों की बातें सुनकर उसका अपनी सनातनी मान्यताओं में यक़ीन और ज़्यादा पुख्ता हो जाता है कि मैं सत्य पर हूं।
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Results उल्टा आता है।
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एक फ़ायदा यह ज़रूर होता है कि आम सनातनी हिंदू मुसलमान के मुंह से वेद गीता पुराण उपनिषद के मंत्र सुनकर प्रभावित होता है और उसे एक नई टाईप का हिंदू मानने लगता है और उससे प्रेम करने लगता है कि यह हमारे ग्रंथो को सत्य मानता है।
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मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने सनातनी वेदांत दर्शन और इस्लामी मान्यताओं के बीच के इस अंतर को बहुत सुंदर ढंग से मिटाया है।
उन्होंने कहा है कि परमेश्वर के गुणों का प्रतिबिंब है परमात्मा और परमात्मा का अंश है आत्मा।
इस बात को ख़ूब अच्छी तरह समझ लेना ज़रूरी है। हर धर्म की पुस्तकों में परमात्मा, पवित्र आत्मा और रूहुल क़ुदुस एक रहस्य (मुतशाबिहाती इल्म) बना हुआ है, जिसके सही से समझ न आने के कारण आदमी ख़ुद को और दूसरों को समझने में ग़लती कर रहा है। इसी ग़लती की वजह से अवतारवाद की मान्यता वुजूद में आई है जबकि राम ने ख़ुद कभी नहीं कहा कि मैं परमेश्वर हूँ। मैं तुम्हारी मनोकामना पूरी करूंगा।
मैं श्री रामचन्द्र जी को पूरा आदर देने के बावुजूद यह कहूंगा कि उनकी कथा बयान करने वाले कवि थे, जो अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग करते थे और उनका जन्म इतिहास से पहले की घटना है।
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जब कोई पात्र ऐतिहासिक न हो तो कवि या लेखक या फिल्म निर्माता उससे कुछ भी असंभव काम होते हुए दिखा सकता है। साउथ इंडिया की मूवी का हीरो अनेक असंभव लगने वाले काम करता है।
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किसी असंभव से लगने वाले काम के होने की क़ीमत केवल तब है, जब वह किसी वास्तविक ऐतिहासिक व्यक्तित्व से हुए हों और समाज पर उसके सकारात्मक प्रभाव पड़े हों, जो प्रमाणों से सिद्ध हों।
जैसे कि अपने नगर में कन्या वध, जुआ, नशा और ब्याज को रोक देना असंभव लगने वाले काम हैं, जो पैग़म्बर मुहम्मद साहब ने किए हैं। इन कामों को आप आज भी देख सकते हैं क्योंकि ये काम उनके नगर में तब से लेकर आज तक लगातार बंद हैं।
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भारत में कोई चाहे कितना ही बड़ा समाज सुधारक बन जाए लेकिन उनमें से कोई अपने नगर में किसी एक भी बुराई को मिटा नहीं पाया।
अहिंसा के पुजारी गांधीजी और वेदांती विवेकानंद जी के नगरों में वे सब बुराईयां, जो उन से पहले मौजूद थीं, उनके सामने भी मौजूद रहीं और वे उनके नगर में आज भी मौजूद हैं बल्कि पहले से ज़्यादा बढ़ गई हैं।
... और दयानंद जी के जन्म स्थान का तो आज तक पता ही नहीं है कि वह किस शहर में, किस गांव में और किस कुल में पैदा हुए थे? उनके जन्म स्थान पर रिसर्च करने वाले उनके शिष्य उनके किसी रिश्तेदार का पता न लगा सके।
ऐसे ही आप हर एक ऐतिहासिक भारतीय गुरु को देख लें और जांच लें कि उन्होंने अपने नगर में किन बुराइयों को रोका?
फ़ैसल अराफ़ात: Sahi baat hai sir , har koi Naya sawal puchhta hai
Pr sir agar Mai unki manyataon ka kaat unke kitabon se nhi balki tark se krun to Kya kaargar rhega?
डा. अनवर जमाल: देखो दोस्त, हमारे उस्ताद मौलाना शम्स नवेद उस्मानी किसी को सवाल पूछने के लायक़ नहीं छोड़ते थे। फिर वह तर्क देते थे और तबलीग़ करते थे। सुनने वाला उनकी बात मानता था।
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तकनीक (तरीक़ा):
उनका तरीक़ा वलियों (संतों) वाला तरीक़ा था। पहले वह अपने मदऊ (संबोधित व्यक्ति) का नाम पूछकर उसके नाम की तारीफ़ करते थे, उसके अच्छे गुणों की, अगर वह हिन्दू भाई होता था वह हिन्दुओं की रूहानियत की तारीफ़ करते थे। वह दिल से सचमुच तारीफ़ करते थे। वह हरेक धर्म के आदमी के साथ ऐसा ही करते थे। तारीफ़ सुनकर वह फ़्रेंडली फ़ील करता था और उसका दिल खिल जाता था।
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फिर मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहब रहमतुल्लाहि अलैह बात करते करते अचानक भावुक रोने लगते थे। उनकी पूरी कोशिश होती थी कि मैं एक इंसान को दूसरे इंसान से जोड़ दूँ।
इससे मदऊ भौंचक्का सा रह जाता था। दुनिया में कोई भी आदमी रोते हुए आदमी से सवाल नहीं कर सकता। कोई भी मदऊ मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रह. से सवाल नहीं करता था। यह एक आम आदत थी। उस विषय पर जितने भी सवाल उठ सकते थे, वह ख़ुद बिना पूछे ही उनका जवाब देते हुए चलते थे। कुछ मौक़ों पर लोग समझने की नीयत से अदब के साथ सवाल भी करते थे और मौलाना उनको तसल्ली बख़्श जवाब देते थे लेकिन उनका आम तरीक़ा वही था, जो ऊपर लिखा है।
रोता हुए आदमी जो भी कहे, सब उसकी सुनते हैं। सारे मदऊ मौलाना की बात ख़ामोश होकर सुनते रहते थे।
अब वह सारे तर्क देते थे, जिनमें बहुत वज़न होता था और कुछ तर्क उनके मुक़ाबले कमज़ोर भी होते थे लेकिन किसी के अंदर उन तर्कों को जज करने के लिए बुद्धि काम नहीं करती थी। सब इमोशनल हो चुके होते थे। कुछ रोने भी लगते थे। रोते रोते ही सबके दिल (सबकॉन्शियस माइंड) में बात उतर जाती थी।
यही तबलीग़ का मक़सद है कि सही बात दिल में उतर जाए।
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सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ साहब की बड़ी ख़िदमत यह है कि उन्होंने हज़रत मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह से अक़ीदत (श्रृद्धा) के बावुजूद अपनी अक़्ल को हाज़िर रखा और उनके कमज़ोर तर्कों को जाँच परखकर अलग कर दिया।
आप मजबूत तर्क दें लेकिन उसके साथ ज़बर्दस्त भावना होनी ज़रूरी है। दूसरा कोई बात कहे तो आप अपनी अक़्ल हाज़िर रखें। दावतो तब्लीग़ में भावना के साथ तर्क देना और भावुक आदमी की बात सुनते हुए अपनी अक़्ल हाज़िर रखना दोनों बहुत ज़रूरी काम हैं।
आप कुछ समझे हों, तो बताने की मेहरबानी करें।
फ़ैसल अराफ़ात: 😊 bhut achha lga sunkar sir.
Mai bhi prrfect dayee banna chahta Hun. Meri Zindagi ka yahi maqsad hai sir,
Ji or btaiyena sir shams naved usmani Rahmatullah alaih ka tariqa e kaar.
डा. अनवर जमाल: Unka tareeqa batane ke liye hi yh group hai.
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Zyada yahan padh len:
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