मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह किस बात को सैकड़ों बार रिपीट करते थे?

रब से ताल्लुक़ की वजहें

हर ग्रुप की वजह अलग है।
लोगों को फ़ूड, मकान, शादी और ख़ुशी की ज़रूरत है। ऐसे में लोग अपनी ज़रूरतों के लिए रब से दुआ माँगते हैं।
एक ग्रुप के लोगों का रब से ताल्लुक़ दुनिया की ज़रूरतों की वजह से है।

एक ग्रुप को हमेशा की ज़िंदगी और जन्नत की राहतें चाहिएं। ये लोग हमेशा के मज़े के लिए रब से जुड़ते हैं।

कुछ लोग ने अपनी ज़िंदगी में बहुत गुनाह किए हैं। उन्हें दुनिया और आख़िरत में सज़ा का डर है। वे रब से माफ़ी और बख़्शिश के लिए जुड़ते हैं।

इन तीनों ज़रूरतों के लिए रब ने लोगों को तौबा और दुआ के लिए कहा है और इसे पसंद किया है।

लेकिन कुछ लोगों को अल्लाह की ख़ूबियाँ पसंद हैं और वे अल्लाह से उसकी ख़ूबियों की वजह‌ से #मुहब्बत करते हैं। वे ज़मीनो आसमान देखते हैं तो अल्लाह की सन्नाई, तख़्लीक़ और इब्दाअ़ (कारीगरी, क्रिएशन और inventions) देखते हैं। कायनात में अद्ल (बैलेंस) और हर काम में माअ़नवियत (सार्थकता) देखते हैं। वे उसका सुरक्षित शब्द #क़ुरआने_मजीद पढ़ते हैं तो वे उसके शब्दों के मिरेकल्स देखते हैं, उसके मीनिंग के मिरेकल्स देखते हैं कि क्या बात कही, कितनी ख़ूबसूरती से कही और जो बात कही, वह अपने वक़्त पर सच हो गई। इसके बाद इस कलाम की बरकतें हैं कि अल्लाह से जिस गुमान के साथ जो आयत पढ़ी, अल्लाह ने उसके गुमान के मुताबिक़ काम कर दिया।

इन बरकतों पर लाखों किताबें लिखी गई हैं और लिखी जा रही हैं।
अहदे-अलस्त (आरंभ) के दिन से हरेक रूह का अपने रब से एक ख़ास रिश्ता है। हरेक रूह ने रब का सवाल सुना था कि 'क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूँ?'
जवाब में सब रूहों ने कहा था 'क्यों नहीं यानी यक़ीनी तौर से आप ही हमारे रब हैं '।

इस क़दीम रिश्ते (प्राचीन संबंध) को याद करना भी ज़िक्र है। जिसे ज़्यादातर लोग भूल गए हैं।
जब उसने माँ के पेट में हमें एक के बाद एक कई रूप दिए, तब वह हमारे साथ था।
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह इन दोनों बातों का बहुत ज़्यादा यानी सैकड़ों बार ज़िक्र करते थे और उनके इस ज़िक्र से ख़ुदा साथ और क़रीब महसूस होता था, जिसका एहसास उनके शागिर्दों के दिलों में सन 1993 में उनकी मौत के बाद से आज तक लगातार क़ायम है।

रब के साथ पहले से और हमेशा से बंदे का एक ऐसा रिश्ता क़ायम है, जिसे बंदा भूल जाए तो भी वह रिश्ता ख़त्म नहीं होता और बंदा उस रिश्ते को याद कर ले तो उसे ख़ुदा की तलाश की ज़रूरत नहीं पड़ती क्योंकि वह हमेशा से साथ, क़रीब और मेहरबान है।

जब हम यह याद रखते हैं तो हमारे जीवन में चमत्कार होता है।
जब तक हम समझते थे कि अकेला और बेबस हूँ तो हमारा सब्कांशियस माइंड हमारे इस सब्कांशियस बिलीफ़ की वजह से हमारा हाल ख़राब किए हुए था और जब हमें यह याद आ जाता है कि अल्लाह हमारे साथ और क़रीब है और वह हम पर मेहरबान है तो हमारा सब्कांशियस माइंड हमारे इस सब्कांशियस बिलीफ़ के अकार्डिंग हमारा हाल सँवारने में जुट जाता है।

मेरे एक फ़ेसबुक मित्र शाहिद भाई ने बताया है कि उनहोंने एक रूहानी आमिल काश अल्बर्नी की किताब आमिल कामिल में पढ़ा कि अगर 7 दिन तक अपने काम पर ख़याल जमाकर 786 बार #Bismillahirrahmanirrahim पढ़ी जाए तो काम हो जाता है। उन्होंने इसे पढ़ा। 5वें दिन उनका काम हो गया, अल्हमदुलिल्लाह। यह ज़रूरत पूरी होने की मिसाल है।

मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह की तालीम से मैं यह समझा हूँ कि एक बंदा ज़रूरत, राहत और माफ़ी के लिए रब से ज़रूर जुड़े लेकिन वह अल्लाह की ऐसी ख़ूबियों को भी ज़रूर देखें, जिनका उसने कभी एहसास नहीं किया।

आपने आज तक अल्लाह की किन ख़ूबियों का एहसास नहीं किया है, यह देखना हो तो आप अल्लाह के 99 नाम पढ़ें। आपको कई नाम ऐसे मिलेंगे, जिनके ज़रिए आपने आज तक दुआ न की होगी।

जैसे कि अलमुक़तदिर और अलमुक़द्दिम नामों को बहुत कम पढ़ा जाता है, जबकि आज के वक़्त में अल्लाह की इन ख़ूबियों पर भी तवज्जो देनी चाहिए और 5-7 मिनट ख़ामोश होकर अपनी रूह में अल्लाह की प्रेज़ेंस को फ़ील करना बहुत ज़रूरी है।

सबसे बड़ा जो है, वह अल्लाह है। उसके वुजूद को और उसकी बड़ाई को "फ़ील" करें।


इससे मौज आती है और यही है #मिशनमौजले

Comments

Popular posts from this blog

شمس نوید عثمانی رحمتہ اللہ علیہ

Maulana Shams Naved Usmani's special dawah technique