हिंदुओं के सरदार और लीडर इस्लाम के तौर-तरीकों और कानूनों को अपना तरीक़ा और कानून बना लेंगे -Maulana Shams Naved Usmani
मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह की नज़र बहुत बारीक थी। मौलाना किसी बात में वह पहलू भी तलाश लेते थे, जिसे सब देख नहीं सकते थे।
मिसाल के तौर पर वह हजरत शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह की इस भविष्यवाणी को बार-बार दोहराया करते थे:
'और जिस बात का मुझे यक़ीन है वह यह कि अगर मस्लन हिंदुओं का हिंदुस्तान के मुल्क पर तसल्लुत मोहकम और हर पहलू से हो जब भी अल्लाह की रू से यह वाजिब और ज़रूरी है कि हिंदुओं के सरदारों और लीडरों के दिल में इल्हाम करे कि वो दीने इस्लाम को अपना मज़हब बना लें।' -अगर अब भी ना जाकर तो और दो पृष्ठ संख्या 28
आमतौर से जब कोई आलिम या दानिश्वर हज़रत शाह साहब की यह भविष्यवाणी पड़ता है तो वह यह नतीजा निकालता है कि शाह साहब यह कह रहे हैं कि जब हिंदुस्तान पर हिंदुओं का क़ब्ज़ा पूरी तरह मज़बूत हो जाएगा तब वे अपना धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम बन जाएंगे और वे मुस्लिमों की तरह कलिमा, रोज़ा, नमाज़, ज़कात और हज अदा करने लगेंगे। एक दिन मौलाना ने मुझे इस भविष्यवाणी के एक ऐसे पहलू के बारे में बताया, जिसकी तरफ़ इन्सान का दिमाग़ नहीं जाता।
मौलाना ने फरमाया कि शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह ने यह फ़रमाया है कि 'अल्लाह की रू से यह वाजिब और ज़रूरी है कि हिंदुओं के सरदारों और लीडरों के दिल में इल्हाम करे कि वो दीने इस्लाम को अपना मज़हब बना लें।' यह नहीं फ़रमाया है कि 'हिंदू इस्लाम क़ुबूल करके मुस्लिम बन जाएंगे।'
मौलाना ने इस बात को साफ़ करते हुए बताया कि शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाहि अलैह ने यह फ़रमाया है कि 'अल्लाह की रू से यह वाजिब और ज़रूरी है कि हिंदुओं के सरदारों और लीडरों के दिल में इलहाम करे कि वो दीने इस्लाम को अपना मज़हब बना लें।' इसका मतलब यह है कि हिंदुओं के सरदार और लीडर इस्लाम के तौर-तरीकों और कानूनों को अपना तरीक़ा और कानून बना लेंगे।
अंग्रेज़ों से आज़ादी के बाद जब हिंदुओं का हिंदुस्तान पर क़ब्ज़ा हो गया और मुल्क के लिए क़ानून की ज़रूरत पड़ी और उन्होंने हिंदुस्तान का कानून बनाया तो उसमें इस्लाम के क़ानूनों को जगह देकर इस्लाम के क़ानूनों को अपना क़ानून बना लिया। उसके बाद लगातार इस्लाम के क़ानून का हिस्सा आम जनता की माँग पर बढ़ता रहा क्योंकि इस्लाम के क़ानून से लोगों का कल्याण होता और उनकी समस्याओं का समाधान होता है।
आज के हिंदी दैनिक में जब मैंने यह ख़बर पढ़ी कि उत्तर प्रदेश के हाई कोर्ट ने कहा है कि अनुकंपा में नियुक्त विधवा पुनर्विवाह कर सकती है और उसे पुनर्विवाह करने के कारण नौकरी से हटाया नहीं जा सकता तो मुझे मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह के मुबारक बोल याद आ गए कि वाक़ई हम हिंदू सरदारों और लीडरों को दीने इस्लाम को अपनाते हुए देख रहे हैं।
यहाँ यह बात भी क़ाबिले ज़िक्र है कि वैदिक धर्म की सनातनी और आर्य समाजी, दोनों मूल व्याख्याओं में विधवा के पुनर्विवाह की कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन फिर भी सनातनी और आर्य समाजी; दोनों संप्रदायों में विधवाएं मुस्लिम विधवाओं की तरह दोबारा विवाह करके जीवन की ख़ुशियाँ पा रही हैं।
यह देखकर मैं बहुत ख़ुश हूँ, अल्हम्दुलिल्लाह!
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