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मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह कहते थे कि 'पीला रंग क्षमा का रंग है।'

कल मैं अपने बेटे अनस ख़ान से बात कर रहा था तो उसमें मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह का ज़िक्र आ गया। मैं अपने बेटे से कह रहा था कि जो सुबह को जल्दी जागकर पढ़ता है, वह ज़्यादा पढ़ लेता है क्योंकि इस वक़्त में बरकत होती है। ब्राह्मणों के जो बच्चे पढ़ने वाले होते हैं, वे साढ़े तीन बजे रात से ही पढ़ना शुरू करते हैं और नतीजे में वे एजुकेशन में आगे रहते हैं। इस तरह बात ब्राह्मणों पर आ गई तो मैंने आगे कहा कि चीन के फ़ेंग शुई का चलन दुनिया में बढ़ा तो ब्राह्मणों को  भी अपना #वास्तुशास्त्र याद आ गया और उन्होंने उसमें #फेंगशुई की बातें एड करके उसे अपडेट कर दिया। वास्तु के अनुसार स्टूडेंट को पूर्व दिशा में सिर करके सोना चाहिए और पूर्व की दिशा में बने कमरे में ही स्टडी करनी चाहिए और  अब नई कालोनी में मकान बनते हैं तो बिल्डर भी वास्तु का ध्यान रखता है। पुराने बने मकानों में कमियाँ होती हैं और उन कमियों को दिखाकर वास्तु विशेषज्ञ तोड़फोड़ कराते हैं या कई हज़ार रुपयों की सामग्री फूंक देते हैं और मकान मालिक को डरा देते हैं कि तूने अग्नि के कोण में पानी का टैंक क्यों बना लिया और जल के...

मौलाना के 'परमतत्व का ज्ञान' देने के बाद, उस पर मेरी 26 साल की रिसर्च

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 *"परमतत्व का ज्ञान"* लेखक: डा० अनवर जमाल ✒️ आपको विषय समझाने के लिए लंबा लेख लिखना पड़ता है ताकि आपका भला हो। आपका भला न करना हो और केवल ख़ुद को व्यक्त करना हो तो एक लाईन की पोस्ट बहुत है। जैसे कि "मानेगा नहीं वह, डुबाकर ही छोड़ेगा" /// ... लेकिन इस एक लाईन से किसी का क्या भला हुआ? लोगों को अधिकतर अपना भला नहीं करना है। उन्हें किसी का विरोध करना है या किसी की प्रशंसा करनी है। /// किसी के विरोध या किसी की प्रशंसा में लोगों की हालत Washer man के dog जैसी हो चुकी है लेकिन उन्हें विरोध या प्रशंसा ही करनी है। /// मैं कहता हूँ कि क्रिएटर ने तुम्हें अपना "मैं" नाम दिया है। जिसकी महिमा बाइबिल, भागवत और गीता तीनों में है। जिसे जानने के बाद यहूदी, ईसाई, पंडित और पठान ने ख़ुद को ऊपर उठा लिया। "मैं" ही आत्मतत्व है जिसे संस्कृत में गीता के दसवें अध्याय में "अहम्" कहा गया है। मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने मुझे बताया कि "अहमद" के नूर से ही यह सृष्टि बनी है।" "उनके इस वाक्य के एप्लीकेशंस तलाशने में मुझे 26 साल लग गए।...

भारतीय नास्तिक के विषय में मौलाना शम्स नावेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह का कथन

 हमारे उस्ताद मौलाना #shams_naved_usmani rh.  साहब कहते थे कि भारत में कोई भी नास्तिक नहीं है। भारत का नास्तिक कम से कम एक ईश्वर से ज़रूर डरता है। उनकी इस बात की पुष्टि तब हुई जब मैंने नास्तिकों को अपने विवाह में पंडित जी के आदेश पर धर्म की सभी क्रियाएं करते हुए देखा। नास्तिकों को अपने बच्चों के विवाह धार्मिक रीति से करते देखा। भारतीय नास्तिक केवल वर्जनाएं तोड़ने के लिए नास्तिकता का ढोंग करते हैं।

मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह किस बात को सैकड़ों बार रिपीट करते थे?

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रब से ताल्लुक़ की वजहें हर ग्रुप की वजह अलग है। लोगों को फ़ूड, मकान, शादी और ख़ुशी की ज़रूरत है। ऐसे में लोग अपनी ज़रूरतों के लिए रब से दुआ माँगते हैं। एक ग्रुप के लोगों का रब से ताल्लुक़ दुनिया की ज़रूरतों की वजह से है। एक ग्रुप को हमेशा की ज़िंदगी और जन्नत की राहतें चाहिएं। ये लोग हमेशा के मज़े के लिए रब से जुड़ते हैं। कुछ लोग ने अपनी ज़िंदगी में बहुत गुनाह किए हैं। उन्हें दुनिया और आख़िरत में सज़ा का डर है। वे रब से माफ़ी और बख़्शिश के लिए जुड़ते हैं। इन तीनों ज़रूरतों के लिए रब ने लोगों को तौबा और दुआ के लिए कहा है और इसे पसंद किया है। लेकिन कुछ लोगों को अल्लाह की ख़ूबियाँ पसंद हैं और वे अल्लाह से उसकी ख़ूबियों की वजह‌ से #मुहब्बत करते हैं। वे ज़मीनो आसमान देखते हैं तो अल्लाह की सन्नाई, तख़्लीक़ और इब्दाअ़ (कारीगरी, क्रिएशन और inventions) देखते हैं। कायनात में अद्ल (बैलेंस) और हर काम में माअ़नवियत (सार्थकता) देखते हैं। वे उसका सुरक्षित शब्द #क़ुरआने_मजीद पढ़ते हैं तो वे उसके शब्दों के मिरेकल्स देखते हैं, उसके मीनिंग के मिरेकल्स देखते हैं कि क्या बात कही, कितनी ख़ूबसूरती से कह...

अरणी मंथन के बारे में मौलाना से क्या ग़लती हुई?

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ईरानी कल्चर में बुज़ुर्ग के, अपने उस्ताद के अदब में यह बात भी सिखाई जाती है कि आप अपने बुज़ुर्ग की या अपने उस्ताद की ग़लती को ग़लती नहीं कह सकते। वही बात भारत में मदरसों और सूफ़ियों की ख़ानक़ाहों में रिवाज पा गई। जिसकी वजह से उस्ताद से कोई ग़लती न जानते हुए हो गई तो फिर उनके शागिर्दों ने उसकी इस्लाह न की बल्कि वे अदब की वजह से उसे दोहराते रहे बल्कि उसे सही साबित करते रहे कि उस्ताद की ग़लती असल में ग़लती न थी। इससे भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिमों के अक़ीदे ख़राब हुए और वे झूठी उम्मीदों में जीने लगे। ऐसा इल्मी ग़लती की इस्लाह करने को बेअदबी में शुमार करने की वजह से हुआ। जबकि यह बात न सहाबा में थी और न इस्लाम में है। यह बात न कालिजों में है और न ही वैज्ञानिकों में। आज अपने उस्ताद की ग़लती को ग़लत बता दो तो शायद लोग इसे अच्छा न समझें लेकिन उस्ताद की ग़लती को बताना तब दीनी तौर वाजिब है, जब उसका ताल्लुक़ दीनी अक़ीदे की हिफ़ाज़त से है। #अरणी_मंथन इसे कहते हैं। जो आप वीडियो में देख रहे हैं। इसका वर्णन वेदों में आया है। मौलाना को पता नहीं था कि प्राचीन काल में पुरोहित यज्ञ करने के लिए अग्नि कैस...

मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह में नर्मी का मिज़ाज और एडजस्टमेंट बहुत था। -DR. ANWER JAMAL

✍🏻 मैंने जवानी में क़दम रखा ही था कि मुझे तफ़्हीमुल क़ुरआन मिल गई। मैंने उसकी सारी मोटी मोटी जिल्दें पढ़ दीं। मैंने उसमें पढ़ा कि 'जो अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के मुताबिक फैसला न करें वही काफ़िर, ज़ालिम और फ़ासिक़ हैं।' देखें पवित्र क़ुरआन 5:45-47 मैंने चारों तरफ़ देखा तो लोग अपनी रस्मो रिवाज और अपनी आदत और अपनी अटकल के मुताबिक़ अपनी ज़िंदगी में फ़ैसले कर रहे थे, बस एक मैं ही था, जो मैं अपने फ़ैसले अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ कर रहा था। मैंने अपने चारों तरफ़ ज़ालिमों, फ़ासिक़ों और काफ़िरों की भरमार देखी।  अब इन सब लोगों पर वे आयतें आसानी से फ़िट हो जाती हैं, जिनमें इन्हें दुनिया में ज़लील होने और मरने के बाद जहन्नम में जाने की पेशगी ख़बर दी गई है। इसके बाद मैंने इन्हें ज़िल्लत और आग से बचाने के लिए इस्लाह शुरू कर दी लेकिन उससे कुछ ज़्यादा फ़र्क़ न पड़ा। लोग जैसे थे, वैसे ही रहे। मेरे नज़रिए में हर आदमी आग की तरफ़ जा रहा था। बड़े बड़े आलिम और यहाँ तक कि मेरे घर वाले भी आग की तरफ़ जाते हुए दिखे। जिससे मैं इतना डर गया कि मुझे डिप्रेशन हो गया। लोग जैसे थे, वैसे ही रहे। मैं बीमार ह...

ख़्वाब में मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह को ख़ुश देखना

आज मैंने ख़्वाब में मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह को देखा और उनसे बात की। वह आसमानी कुर्ता और सफ़ेदपाजामा पहने हुए थे और ख़ुश थे। मैंने सादा और पुराना सा सफ़ेद कुर्ता पाजामा और उस पर स्वेटर पहन रखा था। जैसे कि अक्तूबर नवंबर में पहनते हैं। बस मैं और मौलाना ही थे और तीसरा कोई न था। मैंने उनसे बातें कीं। उनकी बातों में एक मैसेज हो सकता है। इसी ख़्वाब में मैंने ख़ुद को रामपुर में देखा। तारिक़ साहब मुझसे मिले। वह मुझे आया हुआ देखकर बहुत ख़ुश हुए। वह एक बड़े कमरे में स्टूल पर चढ़कर छत में कुछ काम कर रहे थे। जैसे कि घर में पेंट होता है तो लोग क़ीमती बल्ब वग़ैरह उतारते हैं। उन्होंने उसी स्टूल पर खड़े खड़े किसी को सलाह दी कि आजकल पेंट से जुड़ी चीज़ सस्ती मिल रही है, उसे ख़रीदकर रख लो और कुछ वक़्त बाद जब क़ीमत बढ़े तो उसे बेच दो। मैं रामपुर के दोस्तों से मिला। वे भी ख़ुश हुए। उनके पीछे एक इमारत में जुमा की नमाज़ होनी थी। मैं वहां नमाज़ पढ़ने गया तो देखा कि मा शा अल्लाह इमारत नमाजियों भरी हुई है। मैंने अपने दोस्त इब्राहीम को रामपुर में देखा। जो बुलंदशहर से उनसे मिलने आए थे। मैंने इब्र...