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मौलाना के 'परमतत्व का ज्ञान' देने के बाद, उस पर मेरी 26 साल की रिसर्च

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 *"परमतत्व का ज्ञान"* लेखक: डा० अनवर जमाल ✒️ आपको विषय समझाने के लिए लंबा लेख लिखना पड़ता है ताकि आपका भला हो। आपका भला न करना हो और केवल ख़ुद को व्यक्त करना हो तो एक लाईन की पोस्ट बहुत है। जैसे कि "मानेगा नहीं वह, डुबाकर ही छोड़ेगा" /// ... लेकिन इस एक लाईन से किसी का क्या भला हुआ? लोगों को अधिकतर अपना भला नहीं करना है। उन्हें किसी का विरोध करना है या किसी की प्रशंसा करनी है। /// किसी के विरोध या किसी की प्रशंसा में लोगों की हालत Washer man के dog जैसी हो चुकी है लेकिन उन्हें विरोध या प्रशंसा ही करनी है। /// मैं कहता हूँ कि क्रिएटर ने तुम्हें अपना "मैं" नाम दिया है। जिसकी महिमा बाइबिल, भागवत और गीता तीनों में है। जिसे जानने के बाद यहूदी, ईसाई, पंडित और पठान ने ख़ुद को ऊपर उठा लिया। "मैं" ही आत्मतत्व है जिसे संस्कृत में गीता के दसवें अध्याय में "अहम्" कहा गया है। मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह ने मुझे बताया कि "अहमद" के नूर से ही यह सृष्टि बनी है।" "उनके इस वाक्य के एप्लीकेशंस तलाशने में मुझे 26 साल लग गए।...