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मौलाना शम्स नवेद उस्मानी रहमतुल्लाहि अलैह में नर्मी का मिज़ाज और एडजस्टमेंट बहुत था। -DR. ANWER JAMAL

✍🏻 मैंने जवानी में क़दम रखा ही था कि मुझे तफ़्हीमुल क़ुरआन मिल गई। मैंने उसकी सारी मोटी मोटी जिल्दें पढ़ दीं। मैंने उसमें पढ़ा कि 'जो अल्लाह के उतारे हुए हुक्म के मुताबिक फैसला न करें वही काफ़िर, ज़ालिम और फ़ासिक़ हैं।' देखें पवित्र क़ुरआन 5:45-47 मैंने चारों तरफ़ देखा तो लोग अपनी रस्मो रिवाज और अपनी आदत और अपनी अटकल के मुताबिक़ अपनी ज़िंदगी में फ़ैसले कर रहे थे, बस एक मैं ही था, जो मैं अपने फ़ैसले अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ कर रहा था। मैंने अपने चारों तरफ़ ज़ालिमों, फ़ासिक़ों और काफ़िरों की भरमार देखी।  अब इन सब लोगों पर वे आयतें आसानी से फ़िट हो जाती हैं, जिनमें इन्हें दुनिया में ज़लील होने और मरने के बाद जहन्नम में जाने की पेशगी ख़बर दी गई है। इसके बाद मैंने इन्हें ज़िल्लत और आग से बचाने के लिए इस्लाह शुरू कर दी लेकिन उससे कुछ ज़्यादा फ़र्क़ न पड़ा। लोग जैसे थे, वैसे ही रहे। मेरे नज़रिए में हर आदमी आग की तरफ़ जा रहा था। बड़े बड़े आलिम और यहाँ तक कि मेरे घर वाले भी आग की तरफ़ जाते हुए दिखे। जिससे मैं इतना डर गया कि मुझे डिप्रेशन हो गया। लोग जैसे थे, वैसे ही रहे। मैं बीमार ह...