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अरणी मंथन के बारे में मौलाना से क्या ग़लती हुई?

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ईरानी कल्चर में बुज़ुर्ग के, अपने उस्ताद के अदब में यह बात भी सिखाई जाती है कि आप अपने बुज़ुर्ग की या अपने उस्ताद की ग़लती को ग़लती नहीं कह सकते। वही बात भारत में मदरसों और सूफ़ियों की ख़ानक़ाहों में रिवाज पा गई। जिसकी वजह से उस्ताद से कोई ग़लती न जानते हुए हो गई तो फिर उनके शागिर्दों ने उसकी इस्लाह न की बल्कि वे अदब की वजह से उसे दोहराते रहे बल्कि उसे सही साबित करते रहे कि उस्ताद की ग़लती असल में ग़लती न थी। इससे भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिमों के अक़ीदे ख़राब हुए और वे झूठी उम्मीदों में जीने लगे। ऐसा इल्मी ग़लती की इस्लाह करने को बेअदबी में शुमार करने की वजह से हुआ। जबकि यह बात न सहाबा में थी और न इस्लाम में है। यह बात न कालिजों में है और न ही वैज्ञानिकों में। आज अपने उस्ताद की ग़लती को ग़लत बता दो तो शायद लोग इसे अच्छा न समझें लेकिन उस्ताद की ग़लती को बताना तब दीनी तौर वाजिब है, जब उसका ताल्लुक़ दीनी अक़ीदे की हिफ़ाज़त से है। #अरणी_मंथन इसे कहते हैं। जो आप वीडियो में देख रहे हैं। इसका वर्णन वेदों में आया है। मौलाना को पता नहीं था कि प्राचीन काल में पुरोहित यज्ञ करने के लिए अग्नि कैस...